Monday, 5 October 2020

योगीराज में उत्तर प्रदेश के थाने दलितों पर अत्याचार

 योगीराज में उत्तर प्रदेश के थाने दलितों पर अत्याचार के अड्डे बन गए हैं। दलितों को मारपीटा जा रहा है और हत्या की जा रही है। थाने में जब यह न्याय मांगने जाते हैं तो उन्हें गालियां देकर भगा दिया जाता है। 

सूबे की वर्तमान हालात देखकर ‘अंग्रेजी शासन’ की यादें ताजा हो रही हैं। दलितों पर अत्याचार हो रहा है। आवाज उठाने पर मारा जाता है केस और पुलिस की धमकिया दी जाती हैं । 

आप निचे दियें गये ट्विटर स्क्र्रीनशॉट से समझ सकते हैं  मानसिकता है इनकी। 👇


आखिर ये कौन सी विचारधारा है जो जनता को गुलाम समझती हैं?


मैं Cmyogiadityanath Fan Club  और योगी जी  से कहना चाहता हूं कि आप कितनी भी बर्बरता कर लें लेकिन अब हम चुप नहीं बैठेंगे।


और देश और राज्य में अत्याचार के खिलाफ इसी तरीके से आम भाषा में अपनी आवाज उठाते रहेंगे

 जय हिंद जय भारत

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👇धमकिया आप भी पढ़े

बलात्कार-मुक्त समाज हम बना तो सकते हैं, लेकिन उसकी शुरुआत कैसे और कहां से हो?

 उत्तर प्रदेश के हाथरस में सामूहिक बलात्कार की जघन्य वारदात पर व्यापक आक्रोश के बीच इन घटनाओं के वर्णन का उद्देश्य सिनेमा रूपी माध्यम को या समाज के किसी खास वर्ग को कोसना या उसका नकारात्मक चित्रण करना नहीं है. क्योंकि आज हम उस दौर से बहुत आगे बढ़ चुके हैं. इंटरनेट क्रांति और स्मार्टफोन की सर्वसुलभता ने पोर्न या वीभत्स यौन-चित्रण को सबके पास आसानी से पहुंचा दिया है. कल तक इसका उपभोक्ता केवल समाज का उच्च मध्य-वर्ग या मध्य-वर्ग ही हो सकता था, लेकिन आज यह समाज के हर वर्ग के लिए सुलभ हो चुका है. सबके हाथ में है और लगभग फ्री है. कीवर्ड लिखने तक की जरूरत नहीं, आप मुंह से बोलकर गूगल को आदेश दे सकते हैं. इसलिए इस परिघटना पर विचार करना किसी खास वर्ग या क्षेत्र के लोगों के बजाय हम सबकी आदिम प्रवृत्तियों को समझने का प्रयास है. तकनीकें और माध्यम बदलते रहते हैं, लेकिन हमारी प्रवृत्तियां कायम रहती हैं या स्वयं को नए माध्यमों के अनुरूप ढाल लेती हैं.

साल 1989-90 की बात होगी. उत्तर भारत के किसी कस्बाई सिनेमाघर में कोई फिल्म दिखाई जा रही थी. पर्दे पर जैसे ही शक्ति कपूर रूपी खलनायक चरित्र ने अनीता राज रूपी चरित्र का बलात्कार करना शुरू किया, तो हॉल में सीटियां बजनी शुरू हो गईं. तभी अचानक बिजली चली गई. अब जब तक जेनरेटर चलाया जाता और पर्दे पर फिर से रोशनी आती तब तक दर्शकों ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया. और जब बिजली आई तो कहा गया कि उस सीन को दोबारा चलाया जाए.

बड़ी संख्या में उस दौर के पुरुष दर्शक बलात्कार के दृश्य बहुत पसंद करते थे. हाट-बाज़ार में यहां-वहां लगे पोस्टरों के कोनों में जान-बूझकर ऐसे दृश्य अवश्य लगाए जाते थे, जिससे लोगों को यह पता चल सके कि इस फिल्म में बलात्कार का दृश्य भी है. सिनेमाघर के ठीक बाहर के पान की दुकानों पर ये शिकायत आम रहती थी कि बलात्कार का सीन तो दिखाया गया, लेकिन कपड़े ठीक से नहीं फाड़े, कुछ ठीक से नहीं दिखाया, उतना ‘मज़ा’ नहीं आया. हालांकि सिनेमाघर में मौजूद कुछ ऐसे दर्शक भी अवश्य होते थे, जिनकी सहानुभूति पीड़िता के चरित्र से रहती थी. यह कहना मुश्किल है कि उस दौर के फिल्मकारों ने लोगों की  मानसिकता को अच्छी तरह समझकर इस ट्रेंड को भुनाना शुरू किया था, या कि फिल्मकारों द्वारा इस रूप में परोसे गए दृश्यों की वजह से लोगों की रुचि और मानसिकता इस प्रकार की बन गई थी.

इससे मिलती-जुलती एक घटना कुछ समय पहले देखने में आई. बिहार में एक रात्रिकालीन बस (जिन्हें आमतौर पर ‘वीडियो कोच’ कहा जाता है) में सफर करते हुए कंडक्टर ने एक ऐसी फिल्म चलाई जिसमें फिल्म का प्रौढ़ खलनायक बार-बार अलग-अलग तरीकों से अलग-अलग स्कूली बच्चियों का अपहरण और बलात्कार करता था. स्कूल यूनिफॉर्म में ही बलात्कार के दृश्यों को लंबा और वीभत्स रूप में दिखाया जा रहा था. इन पंक्तियों के लेखक ने कंडक्टर को बुलाकर कहा कि भाई, ये सब क्या चला रहे हो. इस बस में महिलाएं और बच्चे भी सफर कर रहे हैं, कम से कम उनका तो लिहाज करो. कंडक्टर अनसुना करते हुए आगे बढ़ गया. दोबारा ऊंची आवाज में कहा गया तो कंडक्टर भी भड़क गया. दाढ़ी और वेश-भूषा देखकर कहने लगा, बाबाजी ये आपके काम की चीज नहीं है, आप तो आंख बंद करके सो जाइये. लंबी बस में सबसे पिछली सीट पर बैठे लोग उस फिल्म का भरपूर आनंद लेना चाहते थे और बार-बार कंडक्टर से कह रहे थे कि वॉल्यूम बढ़ाओ. लेकिन इसके बाद चार-पांच अन्य मुसाफिरों ने भी जब उस फिल्म के दिखाने पर आपत्ति जताई और बात ड्राइवर तक जा पहुंची, तो आखिरकार फिल्म को बदल दिया गया और थोड़ी देर बाद उस वीडियो को ही पूरी तरह बंद कर दिया गया.

नब्बे के दशक के आखिर तक मध्य प्रदेश के एक छोटे जिले में इन पंक्तियों के लेखक ने देखा कि एक-दो ऐसे विशेष सिनेमाघर होते थे, जिनकी ख्याति ही ऐसी फिल्मों की होती थी जिनमें बलात्कार इत्यादि के कई दृश्य फिल्माए गए होते थे. प्रचलित शब्दावली में जिन्हें ‘बी ग्रेड’ या ‘सी ग्रेड’ कहा जाता था, ऐसी फिल्में ही उनमें दिखाई जाती थीं. नेपाल सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के एक जिले के किसी ब्लॉक में हाल तक ऐसा एक विशेष सिनेमाघर देखने को मिला. यह बात वहां शो के इंतजार में खड़े दर्शकों से पूछने पर पता चली. ज्यादातर दर्शक नवयुवक और यहां तक कि किशोर उम्र के ही थे. घोषित रूप से मॉर्निंग शो में चलने वाली एडल्ट फिल्मों के अशोभनीय और वीभत्स पोस्टर दिल्ली के कनॉट प्लेस से लेकर पटना जैसी राजधानियों के लगभग हर सार्वजनिक स्थल परसटे हुए हम सबने देखे ही होंगे। 


Tuesday, 22 September 2020

बिहार मे किसान बिल के खिलाफ सड़क पर उतरे आप कार्यकर्ता

 पटना: भारी विरोध के बावजूद असंवैधानिक तरीके से संसद में पारित हुए किसान विरोधी अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार को चौतरफा घेरने के लिए सड़क पर संघर्ष किया। किसान बिल के विरोध में आप सांसद संजय सिंह राज्य सभा परिसर में ही चादर और तकिया लेकर धरने पर बैठे। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने बिहार सचिव श्रीवत्स पुरषोत्तम के नेतृत्व में राजधानी पटना में इनकम टैक्स गोलम्बर पर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया।

भाजपा सरकार के किसान विरोधी बिल पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आम आदमी पार्टी बिहार के प्रदेश प्रवक्ता बबलू कुमार प्रकाश ने इसे काला कानून बताया और कहा कि किसानों की फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने, किसानों की आय दोगुनी करने के वादे को पूरा करने में नाकाम मोदी सरकार किसानों को पूँजीपतियों का गुलाम बनाना चाहती है। उन्होंने कहा, “आए दिन आत्महत्या कर रहे किसानों का दुख दर्द सुनने के बजाए, पूरे कृषि क्षेत्र को पूजीपतियों के हवाले करने की साजिश है यह किसान विरोधी बिल।

उन्होंने कहा देश में किसानों की हालत पहले से ही बदतर है। प्रदेश की सरकार किसानों को खाद बीज बिजली पानी उपलब्ध करवाने में असमर्थ है न ही गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान हो रहा है। प्रदेश का किसान आत्महत्या को मजबूर है।ऐसे समय भी मोदी सरकार पूंजीपतियों के साथ खड़ी है। बबलू ने कहा आम आदमी पार्टी हमेशा किसानों के हक में खड़ी है और उनके साथ अन्याय नहीं होने देगी।

प्रदेश सचिव श्रीवत्स पुरुषोत्तम ने किसान बिल पर सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि मोदी  सरकार किसानों की आवाज को दबाना चाहती है। हम इसके खिलाफ मजबूती से लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र में बैठी भारतीय जनता पार्टी की सरकार को उन 80 प्रतिशत लोगों की कोई चिंता नहीं है। जो गाँव में रहते हैं और कृषि पर निर्भर हैं। एमएसपी ऑर्डिनेंस बिल इस बात का जीता जागता प्रमाण है।

पार्टी नेता राजेश सिन्हा ने कहा कि कृषि को प्राइवेट हाथों में देने के लिए यह बिल लाया गया है। इस बिल के कारण धान और गेहूं की एमएसपी खत्म हो जाएगी।बिल के माध्यम से सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को कृषि सेक्टर को हड़पने की खुली छूट दे दी है। केंद्र सरकार द्वारा एयरपोर्ट, एलआईसी, बैंक, एयर इंडिया बेचने के अलावा रेलवे का निजीकरण करने पर नाराजगी जताते हुए आम आदमी पार्टी ने कहा कि अब प्रधानमंत्री मोदी इस किसान अध्यादेश के माध्यम से किसानों की खेती को भी छिनना चाहते हैं।

‘आप’ चिकित्सा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. पंकज गुप्ता ने कहा कि इस बिल के पास होने से बड़े-बड़े पूंजिपतियों को कृषि क्षेत्र में आने का मौका मिलेगा। 10-20 एकड़ जमीन के क्लस्टर बनेंगे और पूंजीपति कहीं से भी फसल खरीद कर, देश में कहीं भी उसका भंडारण कर सकेंगे। आपको बता दें कि इस अध्यादेश के पारित होने के बाद किसी भी जरूरी वस्तु को कहीं भी इकट्ठा करने, जरूरी वस्तुओं का जितना चाहे उतना भंडारण करने और जब मन चाहे उसे बेचने की स्वीकृति मिल गई है। रविवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों के उपज, व्यापार और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित दो विधेयक पेश किए थे, जिसका विरोध करते हुए आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने इसे भारतीय जनतंत्र के लिए काला कानून कहा था। साथ ही “सड़क से लेकर संसद तक” इस विधेयक के विरोध में प्रदर्शन करने का ऐलान किया था। पूरे विपक्ष और सहयोगी अकाली दल के विरोध के बाद भी राज्यसभा से इस विधेयक को पास किए जाने के विरोध में सदन में जम कर हंगामा हुआ था। 

मौके पर पटना जिला अध्यक्ष चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव, अरुण रजक, राजेश सिन्हा, सुयश कुमार ज्योति, अर्जुन ठाकुर, उमा दफ़्तुआर, दिलीप झा, संजीव कुमार, अंजनी पोद्दार, शैल देवी, सन्नी कुमार, सतीश कुमार, अमित कुमार, रंजीत सिंह, रवि कुमार, कृष्ण मुरारी गुप्ता मौजूद थे।

 

Friday, 24 April 2020

ग्राम पंचायतें ग्रामीण प्रशासन का महत्वपूर्ण अंग है।

मित्रों 🙏 आज #National_Panchayati_Raj_Day हैं औऱ आज प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी निर्वाचित प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, "महिला सरपंचों के पतियों" या "सरपंच पति" की प्रथा को समाप्त करने का आह्वान किया, ताकि वे सत्ता में चुने जाने वाले अपने काम के लिए अनुचित प्रभाव डाल सकें।

इस संदर्भ मे मैं अपना विचार जानता के समक्ष रखना चहता हूँ ताकी सरकार इन पहलूओ पर भी ध्यान केन्द्रित कर सकें .

॥ आवश्यकता, महत्व और समस्या व सुझाव ॥ 

प्राचीन काल से ही ग्राम पंचायतें ग्रामीण प्रशासन का महत्वपूर्ण अंग रही है। वस्तुतः पंचायतराज प्रणाली एक एैसी प्रणाली है। जिसमें हमें लोकतंत्र का सही ढांचा दिखाई देता है। मगर वर्तमान पंचायती संस्थाऐं इस मायने में कई महत्वपूर्ण अधिकार साधन और उत्तरदायित्व सौपे गये है। स्वाधीनता से पहले और उसके बाद भी इस बात के लिए आंदोलन होता रहा कि अगर हमें सच्चे अर्थों में अपने गांवों में स्वराज्य पहुंचाना है तो उसके लिए पंचायती राज की स्थापना करनी होगी इनका महत्व और उपयोगिता निम्नलिखित बातों से स्पश्ट हैंः-

पंचायती राज व्यवस्था एक एैसी व्यवस्था है, जो केन्द्रिय एवं राज्य सरकारो को स्थानीय समस्याओं के भार से हल्का करती है। उनके द्वारा ही शासकीय शक्तियों एवं कार्यो का विकेन्द्रीकरण किया जा सकता है। प्राजातांत्रिक प्रणाली में कार्यांे का विकेन्द्रीकरण करने पर इस प्रक्रिया में  शासकीय सत्ता गिनी चुनी संख्याओं में न रखकर गांव की पंचायत के कार्यकताओं के हाथों में पहुंच जाती है जिससे कि इनके अधिकार और कार्य क्षेत्र बढ़ जाते हैं। स्थानीय व्यक्ति स्थानीय समस्याओं को अच्छे ढंग से सुलझा सकते हैं। क्योकि वे लोग वहां की समस्या एवं परिस्थितियों को अधिक अच्छे से जानते है। इन स्थानीय पदाधिकारियों के बिना ऊपर से प्रारंभ किये हुए राश्ट्र निर्माण के क्रियाकलापों का सुचारूपूर्ण ढंग से चलना भी मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार ग्राम पंचायत स्वस्थ प्रजातांत्रिक परम्पराओं को स्थापित करने के लिए ठोस आधार प्रदान करती है, शासन सत्ता ग्रामवासियों के हाथ में चली जाने से प्रजातांत्रिक संगठनों के प्रति उनकी रूचि जागृत होती है। पंचायती राज व्यवस्था के स्थापित होने से यह संख्या ग्राम व देश के लिए भावी नेतृत्व तैयार करती है। विधायकों तथा मंत्रियों को प्राथमिक अनुभव एवं प्रशिक्षण प्रदान करती है। जिससे वे ग्रामीण भारत की समस्या से अवगत हो। इस प्रकार गांवों में उचित नेतृत्व का निर्माण करने एक विकास कार्यो में जनता की रूचि बढ़ाने में पंचायतों का प्रभावी योगदान रहता है

पंचायतें प्रजातंत्र का प्रयोगशाला है। यह नागरिको को अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रयोग की शिक्षा देती है। साथ ही उनमें नागरिक गुणों का विकास करने में मदद करती है। पं. नेहरू ने स्वंय कहा था कि “मैं पंचायती राज के प्रति पूर्णतः आशान्वित हूॅं मैं महसूस करता हूॅ कि भारत के संदर्भ में यह बहुत कुछ भौतिक एवं क्रांतिकारी है।“ औऱ वर्तमान मे  “इन संस्थाओ ने नये स्थानीय नेताओं को जन्म दिया है जो आगे चलकर राज्य और केन्द्रीय समाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियो से अधिक शक्तिशाली हो सकते हैं। इस प्रकार इन संस्थाओं ने देश के राजनीतिक आधुनिकीकरण और सामाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्माण किया है तथा हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जन हिस्सेदारी में कृशि करके गांवों में जागरूकता उत्पन्न कर दी है।

॥ समस्या ॥ 

यद्यपि पंचायती राज व्यवस्था विभिन्न कारणों से ग्रामीण जनता मे नई आशा और विश्वास पैदा करने में असफल रही है तथापि कुछ मायनों में यह संस्था अवश्य सफल रही है। वस्तुतः जब तक ग्रामीणों मे चेतना नहीं आती तब तक ये संस्थाएंये सफल नहीं हो सकती। इसके समक्ष कुछ नई समस्याएॅं उत्पन्न हो गई हैं। जिसका निराकरण करना आवश्यक हैः-

1.अशिक्षा और और ग्रामीणों की निर्धनता की विकट समस्या विकराल रूप  धारण कर चूकि है। ऐसी स्थिति मंे ग्रामीण समुदाय व नेतृत्व अपने संकीर्ण स्तरों से उपर उठ नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में ग्रामीण व्यक्ति पंचायती राज की आवश्यक्ता और महत्व के बारे मंे अज्ञानतावश और अपनी निर्धनता के कारण कुछ भी नहीं कर पाते ।

2. पंचायती राज की सफलता मंे दलगत राजनीति भी विशेश रूकावट रही है। पंचायतंे स्थानीय राजनीति का अखाड़ा बनती जा रही हैं। यदी हमारे राजनीतिक दल  पंचायतों के चुनावो में हस्तक्षेप करना बंद कर दे तो पंचायतों को दूशित राजनीति से बचाया जा सकता है। लोकतंत्र की सफलता की पहली शर्त सत्ता का स्थानीय संस्थाओं को हस्तांतरण करना है। यह तभी संभव है जब राजनीतिक प्रेरणा नीचे के स्तरों से शुरू हो और उच्च स्तर केवल मार्ग निर्देशन का कार्य करे। राज्य सरकारें इन संस्थाओं को अपने आदेशों का पालन करने वाला ऐजेन्ट मात्र न समझे। इसके लिए नौकरशाही की मनोवृत्ति में भी परिवर्तन की अवश्यक्ता है।

3. संस्थाओं में आर्थिक स्त्रोत की कमी इन्हें शासकीय अनुदान पर ही जीवित रहना पड़ता है। अतः पंचायती राज संस्थाओं के संचालन के लिए आय के पर्याप्त एवं स्वतंत्र स्त्रोत प्रदान किये जाने चाहिए ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुढृढ़ बन सके।

4. राजनीतिक जागरूकता की कमी भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। जो पंचायती राज समस्याओं की सफलता मंे रूकावट बनते हैं।

5. स्थानीय निकायों पर स्थानीय, सांसदों, मंत्रियों और प्रभावशाली नेताओं के घरानों एवं रिश्तेदारों का कब्जा हो रहा है।

6. स्थानीय निकायों पर संगठित माफियो और अपराधियों का कब्जा हो रहा है।

7. महिला आरक्षण अर्थहीन हो गया है, क्योंकि सरपंच या प्रधान पति नामक एक नवीन प्रजाति का उदय हुआ है।

8. वैमनस्यता मंे वृद्धि हुई है।

9. स्थानीय निकायों के सदस्य स्वस्थ योजनाओं के बजाय अधिकतम निर्माण कार्यों में रूचि लेते हैं, पंचायतों के अधिकांश ठेकेदार स्वयं मुखिया, पार्शद या उनके रिश्तेदार होते हैं ।

10. भारत के अधिकांश पंचायत प्रतिनिधियों पर भ्रश्टाचार एवं गबन के मामले दर्ज हुए हैं।

इस प्रकार स्पश्ट है कि दूशित राजनीति संस्कृति के कारण पंचायती राज का क्रियान्वयन संतोशजनक नहीं है।

॥ सुझाव॥ 

लोकतंत्र की सार्थकता तभी है जब देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था गांवों से लेकर संसद तक प्रत्येक स्तर पर जनता के प्रतिनिधियों की अधिकतम भागीदारी हो। भारत में गांव आर्थिक समृद्धि के प्रतिक हैं। अतः देश तभी समृद्ध हो सकता है जबकि इसकी आत्मा के रूप मंे गांवों की प्रगति हो और गांवों का सर्वांगीण विकास पंचायतों की सफलता के द्वारा ही संभव है।

1.आज जरूरत इस बात की है कि योजनाओं के बेहतर समन्वय और क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जाये। निगरानी तंत्र को मजबूत बनाया जाय और भ्रश्टाचार पर लगाम लगाने सख्त कार्यवाही की जाये। औऱ निगरानी मे गैर सरकारी  ग्रामसभा के लोगों कों सामिल किया जाये .

2. पूरा प्रशासनिक ढांचा निहित स्वार्थ के कब्जे में है।

3.आवश्यकता इस बात की है कि. ग्राम पंचायती व्यवस्था के नाम पर राजनीति के केन्द्र ना बन जाय यदि एैसा होता है तो पंचायतीराज व्यवस्था की जड.े हिल जायेगी और सच्चे लोकतंत्र की आधार शिला ढह जायेगी 

किसी भी देश , प्रदेश या गांव में पंचायती राज व्यवस्था तभी करगर हो सकती है जब उसके क्रियाकलापों को दलगत राजनीति से दूर रखा जाय यह भी सच है कि पंचायतीराज लोकतंत्र का यंत्र भी है। अतः पंचायतीराज संस्थाओं मूें व्याप्त गुटबन्दी को समाप्त करना भी इनके हित में ही होगा । 

पंचायतों के वित्तिय हालत में भी सुधार अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारियों को भी पंचायतों के मित्र,सहयोगी और पथ प्रदर्शक के रुप में कार्य करना चाहिये। पंचायतीराज व्यवस्था को आम जनता और सरकार के बीच सेतु का काम करना चाहिए। आम जनता की भावना की अवज्ञा करके कोई भी देश लोकतंत्र की सफलता का दावा नहीं कर सकता।

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धणेवाद .🙏 🙏