Friday, 24 April 2020

ग्राम पंचायतें ग्रामीण प्रशासन का महत्वपूर्ण अंग है।

मित्रों 🙏 आज #National_Panchayati_Raj_Day हैं औऱ आज प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी निर्वाचित प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, "महिला सरपंचों के पतियों" या "सरपंच पति" की प्रथा को समाप्त करने का आह्वान किया, ताकि वे सत्ता में चुने जाने वाले अपने काम के लिए अनुचित प्रभाव डाल सकें।

इस संदर्भ मे मैं अपना विचार जानता के समक्ष रखना चहता हूँ ताकी सरकार इन पहलूओ पर भी ध्यान केन्द्रित कर सकें .

॥ आवश्यकता, महत्व और समस्या व सुझाव ॥ 

प्राचीन काल से ही ग्राम पंचायतें ग्रामीण प्रशासन का महत्वपूर्ण अंग रही है। वस्तुतः पंचायतराज प्रणाली एक एैसी प्रणाली है। जिसमें हमें लोकतंत्र का सही ढांचा दिखाई देता है। मगर वर्तमान पंचायती संस्थाऐं इस मायने में कई महत्वपूर्ण अधिकार साधन और उत्तरदायित्व सौपे गये है। स्वाधीनता से पहले और उसके बाद भी इस बात के लिए आंदोलन होता रहा कि अगर हमें सच्चे अर्थों में अपने गांवों में स्वराज्य पहुंचाना है तो उसके लिए पंचायती राज की स्थापना करनी होगी इनका महत्व और उपयोगिता निम्नलिखित बातों से स्पश्ट हैंः-

पंचायती राज व्यवस्था एक एैसी व्यवस्था है, जो केन्द्रिय एवं राज्य सरकारो को स्थानीय समस्याओं के भार से हल्का करती है। उनके द्वारा ही शासकीय शक्तियों एवं कार्यो का विकेन्द्रीकरण किया जा सकता है। प्राजातांत्रिक प्रणाली में कार्यांे का विकेन्द्रीकरण करने पर इस प्रक्रिया में  शासकीय सत्ता गिनी चुनी संख्याओं में न रखकर गांव की पंचायत के कार्यकताओं के हाथों में पहुंच जाती है जिससे कि इनके अधिकार और कार्य क्षेत्र बढ़ जाते हैं। स्थानीय व्यक्ति स्थानीय समस्याओं को अच्छे ढंग से सुलझा सकते हैं। क्योकि वे लोग वहां की समस्या एवं परिस्थितियों को अधिक अच्छे से जानते है। इन स्थानीय पदाधिकारियों के बिना ऊपर से प्रारंभ किये हुए राश्ट्र निर्माण के क्रियाकलापों का सुचारूपूर्ण ढंग से चलना भी मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार ग्राम पंचायत स्वस्थ प्रजातांत्रिक परम्पराओं को स्थापित करने के लिए ठोस आधार प्रदान करती है, शासन सत्ता ग्रामवासियों के हाथ में चली जाने से प्रजातांत्रिक संगठनों के प्रति उनकी रूचि जागृत होती है। पंचायती राज व्यवस्था के स्थापित होने से यह संख्या ग्राम व देश के लिए भावी नेतृत्व तैयार करती है। विधायकों तथा मंत्रियों को प्राथमिक अनुभव एवं प्रशिक्षण प्रदान करती है। जिससे वे ग्रामीण भारत की समस्या से अवगत हो। इस प्रकार गांवों में उचित नेतृत्व का निर्माण करने एक विकास कार्यो में जनता की रूचि बढ़ाने में पंचायतों का प्रभावी योगदान रहता है

पंचायतें प्रजातंत्र का प्रयोगशाला है। यह नागरिको को अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रयोग की शिक्षा देती है। साथ ही उनमें नागरिक गुणों का विकास करने में मदद करती है। पं. नेहरू ने स्वंय कहा था कि “मैं पंचायती राज के प्रति पूर्णतः आशान्वित हूॅं मैं महसूस करता हूॅ कि भारत के संदर्भ में यह बहुत कुछ भौतिक एवं क्रांतिकारी है।“ औऱ वर्तमान मे  “इन संस्थाओ ने नये स्थानीय नेताओं को जन्म दिया है जो आगे चलकर राज्य और केन्द्रीय समाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियो से अधिक शक्तिशाली हो सकते हैं। इस प्रकार इन संस्थाओं ने देश के राजनीतिक आधुनिकीकरण और सामाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्माण किया है तथा हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जन हिस्सेदारी में कृशि करके गांवों में जागरूकता उत्पन्न कर दी है।

॥ समस्या ॥ 

यद्यपि पंचायती राज व्यवस्था विभिन्न कारणों से ग्रामीण जनता मे नई आशा और विश्वास पैदा करने में असफल रही है तथापि कुछ मायनों में यह संस्था अवश्य सफल रही है। वस्तुतः जब तक ग्रामीणों मे चेतना नहीं आती तब तक ये संस्थाएंये सफल नहीं हो सकती। इसके समक्ष कुछ नई समस्याएॅं उत्पन्न हो गई हैं। जिसका निराकरण करना आवश्यक हैः-

1.अशिक्षा और और ग्रामीणों की निर्धनता की विकट समस्या विकराल रूप  धारण कर चूकि है। ऐसी स्थिति मंे ग्रामीण समुदाय व नेतृत्व अपने संकीर्ण स्तरों से उपर उठ नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में ग्रामीण व्यक्ति पंचायती राज की आवश्यक्ता और महत्व के बारे मंे अज्ञानतावश और अपनी निर्धनता के कारण कुछ भी नहीं कर पाते ।

2. पंचायती राज की सफलता मंे दलगत राजनीति भी विशेश रूकावट रही है। पंचायतंे स्थानीय राजनीति का अखाड़ा बनती जा रही हैं। यदी हमारे राजनीतिक दल  पंचायतों के चुनावो में हस्तक्षेप करना बंद कर दे तो पंचायतों को दूशित राजनीति से बचाया जा सकता है। लोकतंत्र की सफलता की पहली शर्त सत्ता का स्थानीय संस्थाओं को हस्तांतरण करना है। यह तभी संभव है जब राजनीतिक प्रेरणा नीचे के स्तरों से शुरू हो और उच्च स्तर केवल मार्ग निर्देशन का कार्य करे। राज्य सरकारें इन संस्थाओं को अपने आदेशों का पालन करने वाला ऐजेन्ट मात्र न समझे। इसके लिए नौकरशाही की मनोवृत्ति में भी परिवर्तन की अवश्यक्ता है।

3. संस्थाओं में आर्थिक स्त्रोत की कमी इन्हें शासकीय अनुदान पर ही जीवित रहना पड़ता है। अतः पंचायती राज संस्थाओं के संचालन के लिए आय के पर्याप्त एवं स्वतंत्र स्त्रोत प्रदान किये जाने चाहिए ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुढृढ़ बन सके।

4. राजनीतिक जागरूकता की कमी भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। जो पंचायती राज समस्याओं की सफलता मंे रूकावट बनते हैं।

5. स्थानीय निकायों पर स्थानीय, सांसदों, मंत्रियों और प्रभावशाली नेताओं के घरानों एवं रिश्तेदारों का कब्जा हो रहा है।

6. स्थानीय निकायों पर संगठित माफियो और अपराधियों का कब्जा हो रहा है।

7. महिला आरक्षण अर्थहीन हो गया है, क्योंकि सरपंच या प्रधान पति नामक एक नवीन प्रजाति का उदय हुआ है।

8. वैमनस्यता मंे वृद्धि हुई है।

9. स्थानीय निकायों के सदस्य स्वस्थ योजनाओं के बजाय अधिकतम निर्माण कार्यों में रूचि लेते हैं, पंचायतों के अधिकांश ठेकेदार स्वयं मुखिया, पार्शद या उनके रिश्तेदार होते हैं ।

10. भारत के अधिकांश पंचायत प्रतिनिधियों पर भ्रश्टाचार एवं गबन के मामले दर्ज हुए हैं।

इस प्रकार स्पश्ट है कि दूशित राजनीति संस्कृति के कारण पंचायती राज का क्रियान्वयन संतोशजनक नहीं है।

॥ सुझाव॥ 

लोकतंत्र की सार्थकता तभी है जब देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था गांवों से लेकर संसद तक प्रत्येक स्तर पर जनता के प्रतिनिधियों की अधिकतम भागीदारी हो। भारत में गांव आर्थिक समृद्धि के प्रतिक हैं। अतः देश तभी समृद्ध हो सकता है जबकि इसकी आत्मा के रूप मंे गांवों की प्रगति हो और गांवों का सर्वांगीण विकास पंचायतों की सफलता के द्वारा ही संभव है।

1.आज जरूरत इस बात की है कि योजनाओं के बेहतर समन्वय और क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जाये। निगरानी तंत्र को मजबूत बनाया जाय और भ्रश्टाचार पर लगाम लगाने सख्त कार्यवाही की जाये। औऱ निगरानी मे गैर सरकारी  ग्रामसभा के लोगों कों सामिल किया जाये .

2. पूरा प्रशासनिक ढांचा निहित स्वार्थ के कब्जे में है।

3.आवश्यकता इस बात की है कि. ग्राम पंचायती व्यवस्था के नाम पर राजनीति के केन्द्र ना बन जाय यदि एैसा होता है तो पंचायतीराज व्यवस्था की जड.े हिल जायेगी और सच्चे लोकतंत्र की आधार शिला ढह जायेगी 

किसी भी देश , प्रदेश या गांव में पंचायती राज व्यवस्था तभी करगर हो सकती है जब उसके क्रियाकलापों को दलगत राजनीति से दूर रखा जाय यह भी सच है कि पंचायतीराज लोकतंत्र का यंत्र भी है। अतः पंचायतीराज संस्थाओं मूें व्याप्त गुटबन्दी को समाप्त करना भी इनके हित में ही होगा । 

पंचायतों के वित्तिय हालत में भी सुधार अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारियों को भी पंचायतों के मित्र,सहयोगी और पथ प्रदर्शक के रुप में कार्य करना चाहिये। पंचायतीराज व्यवस्था को आम जनता और सरकार के बीच सेतु का काम करना चाहिए। आम जनता की भावना की अवज्ञा करके कोई भी देश लोकतंत्र की सफलता का दावा नहीं कर सकता।

अगर आप लोग मेरे विचारों से सहमत हैं तो शेयर करें .

धणेवाद .🙏 🙏

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