Monday, 6 April 2015

प्रशांत भूषण जी का अरविन्द केजरीवाल के नाम एक ‘खुला पत्र’


प्रिय अरविंद,                                                                             Fri, Apr 3, 2015 at 9:59 PM
28 मार्च को आयोजित राष्ट्रीय परिषद की सभा मे, आपने अपने संयोजकीय भाषण में पार्टी की स्थिति के आंकलन और उसकी भावी गतिविधियां क्या होगी, इस पर कुछ बोलने के बजाय, सीधा योगेन्द्र यादव, मेरे बिज़ुर्ग पिता और मुझ पर अनेक तरह के सरासर झूठे और भड़काऊ आरोप लगाते हुए आक्रमण किया! आपके इस तरह के उग्र भाषण ने दिल्ली के कई विधायकों को (जो राष्ट्रीय परिषद के सदस्य भी नहीं थे) हमारे खिलाफ़ चीख-चीख कर आहत करने वाले आपत्तिजनक शब्द -‘गद्दारो को बाहर फेको’ और नारे बोलने के लिए उत्तेजित किया ! परिषद की वो भीड़ उस समय इतनी खूँखार और उग्र थी कि जब वे सब मेरे पिता शांति भूषण जी की  ओर लपके तो, उन्हें लगा कि आज वे यहाँ से ज़िंदा वापिस नहीं जायेगे !

आपने जो हम पर आरोप मढे, उनका उत्तर भी हमें देने का मौका आपने नहीं दिया ! आपके भाषण के तुरंत बाद विधायको की चीख–पुकार के बीच, मनीष जी ने बिना किसी अध्यक्षता के और उपस्थित लोगो की अनुमति लिए बिना, हमारे ‘हटाये’ जाने के प्रस्ताव को अविलम्ब जल्दी-जल्दी पढ़ डाला और उसके बाद बिना किसी चर्चा के उन्होंने लोगों से हाथ उठाकर पक्ष और विपक्ष में अपना मत देने के लिए कहा ! जिसका नतीजा ये हुआ कि इस असम्वैधानिक ढंग से हासिल किए गए परिणाम को जान कर, हमें वहाँ से उठ कर बाहर जाना पड़ा क्योंकि वहाँ एक अच्छा खासा तमाशा खडा हो गया था !

यह सारी हलचल  साफ-साफ़ कई कारणों से, पहले से बना बनाया  एक नाटक जैसी थी - क्योंकि राष्ट्रीय परिषद के अनेक सदस्यों को निमंत्रित ही नहीं किया गया था,बल्कि उन्हें बैठक में आने की अनुमति ही नहीं दी गई थी ! सभा-गृह में आधे से अधिक लोग  ऐसे थे, जो  राष्ट्रीय परिषद के सदस्य ही नहीं थे, जो उपस्थित थे उनमें - विधायक, चार  प्रान्तों के जिला और राज्य संयोजक, स्वयमसेवक और  फसादी तत्व थे ! इसके अलावा  समूची कार्यवाही  अनुशासन रहित थी, क्योंकि वहाँ मौजूद खौफनाक एवं शरारती तत्वों के अलावा,  कार्यवाही का वीडियों बनाए जाने की मनाही थी, यहाँ तक के, पार्टी के ‘लोकपाल’ तक को उस सभा में प्रवेश की अनुमति नही थी !  

अट्ठाईस तारीख़ के बाद जो घटा, वह नाटक  उस  स्तर तक पहुँच गया कि यह साफ़ नज़र  आने लगा था कि पार्टी के  अधिनायक (Dictator) द्वारा  स्टालिन की ‘सफाया’ नीति को अपनाया जा  रहा था  ! पार्टी के लोकपाल को,  जो भेद-भाव की नीति से मुक्त एक अतिमहत्वपूर्ण और ऊंचे कद का अधिकारी माना जाता है, उसे भी असम्वैधानिक तरीके से  सिर्फ़  इस कारण से हटा दिया गया क्योंकि उसने राष्ट्रीय परिषद की सभा में आना चाहा था और जो सम्यक रूप से न्यायप्रियता का हिमायतीथा !  उसके अलावा बड़े ही असम्वैधानिक ढंग से राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी  निलंबित  कर दिए गए क्योंकि उन्होंने  राष्ट्रीय परिषद की सभा में होने वाली  गुंडागर्दी के  बाद, हमारे द्वारा बुलाए गए  संवाददाता  सम्मेलन में भाग लिया था !

      तदनंतर, आपने राष्ट्रीय परिषद की बैठक में दिए गए अपने भाषण की चतुरता से काट छांट करके उसका प्रसारण करवाया, जिसमे हमारे खिलाफ़ अनेक झूठे आरोप भरे हुए थे ! उस वीडियों मे से उस बैठक मे भीड़ के द्वारा की गई  गुंडागर्दी के अंश भी आपने निकलवा दिए थे !अतेव इन सब हालात से आहत होकर मैं आपको यह खुला पत्र लिखने के लिए बाध्य हूँ !
मैं आपके द्वारा लगाये गए आरोपों का जवाब देकर सबके सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहता हूँ और इसके लिए मुझे उन पिछली घटनाओं का उल्लेख करना होगा जहाँ से मेरा  आपसे गम्भीर  मत-वैभिन्य शुरू हुआ था !  अगर आपको याद हो, मेरा मत-वैभिन्य लोक-सभा चुनावो के बाद तब से शुरू हुआ, जब एक के बाद एक मनमुटाव की घटनाएं घटी, जिनसे  आपके व्यक्तित्व और चरित्र की दो अहम खामियां सामने आई ! पहला कारण, राजनीतिक क्रियान्वयन समिति (पी.ए.सी.) और राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति का बहुमत आपके निर्णय के विरुद्ध होने पर भी, आप अपना निर्णय किसी भी कीमत पर पार्टी पे थोपना चाहते थे ! उसमे आपके वे निर्णय भी शामिल थे, जो नि:संदेह जनहित के और पार्टी के - दोनों के लिए बहुत नुकसानदायक सिद्ध होते ! इसके बाद, दूसरा बड़ा कारण ये था कि आप अपना मतलब साधने के लिए बहुत अधिक अनैतिक और किसी हद तक आपराधिक तरीके अपनाना चाहते थे !

लोक-सभा चुनावो के बाद आपको लगा कि पार्टी खत्म हो गई और अब तभी उठ खडी हो सकती है, जब हम फिर से दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब होए ! इसलिए चुनावो के तुरंत बाद आपने कांग्रेस पार्टी के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाने के लक्ष्य से कांग्रेस पार्टी से बातचीत शुरू कर दी ! जब यह बात बाहर निकली तो बहुत बड़ी संख्या में ‘आम आदमी पार्टी’ के महत्वपूर्ण सदस्य - पृथ्वी  रेड्डी, मयंक गांधी और अंजलि दामानिया ने मुझसे बात की और कहा कि अरविन्द जी की कांग्रेस से समर्थन वाली सोच’ बहुत खतरनाक साबित होगी और यदि ऐसा हुआ तो वे पार्टी छोड़ देगें ! उस समय मैं शिमला में था ! मैंने आपसे फोन पर समझाते हुए बात करी कि इस मामले में आपको तब तक कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जब तक कि राजनीतिक क्रियान्वयन समिति (पी.ए.सी.) की बैठक मे इस पर गंभीरता से विचार न कर लिया जाए !


मैं शिमला से तुरंत वापिस आ गया और हमने आपके घर पर राजनीतिक क्रियान्वयन समिति (पी.ए.सी.) की बैठक की ! उस बैठक में अधिकतम सदस्य संख्या - 5:4 –ने यह कहा कि हमें कांगेस के समर्थन से सरकार नही बनानी चाहिए ! मैंने इस बात की ओर भी आपका विशेष ध्यान आकृष्ट किया  कि ऐसा करने से हम ‘अवसरवादी’ लगेगे और वैसे भी जनता के सामने दिए गए अपने वक्तव्य को बदलने की तुक भी नहीं है ! मैंने यह भी कहा कि इस तरह की  साझा सरकार अधिक समय तक चलने वाली नहीं, क्योंकि कांग्रेस जल्द ही आपना ‘हाथ’ खींच  लेगी, तथा ऐसा होने पर हमें अपनी पार्टी को फिर से खड़ा करना और भी अधिक कठिन होगा !

इसके उपरांत, बहुमत के निर्णय पर अटल रहने के बजाए आपने कहा कि भले ही बहुमत का निर्णय आपकी सोच से अलग हो लेकिन अंतिम निर्णय लेने का अधिकार आपको ही है और  आप कांग्रेस का समर्थन लेगें ! इस बिंदु पर मेरी आपसे अच्छी-खासी जुबानी बहस हुई थी ! मैंने स्पष्ट कहा कि पार्टी इस तरीके से नहीं चल सकती, प्रजातांत्रिक ढंग से चलानी होगी, और यह तय हुआ किराष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति, जिसमे सदस्य काफी संख्या में है, उसमे इस विषय को उठाया जाए ! परिणामस्वरूप, इस बारे में सदस्यों को ई-मेल द्वारा सूचित किया  गया और सदस्यों को अगले दिन इस बारे में अपना मतदान करना था ! अगले दिन सदस्यों ने एक बार फिर बहुमत से इस निर्णय का विरोध किया ! इस पर आपके द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल को चुपचाप खत भेजा गया जिसमें सदन को अगले एक सप्ताह तक भंग न करने का निवेदन किया गया ! क्योंकि दिल्ली की सरकार बनाने के संदर्भ में ‘आप’ पार्टी जनता से राय-मशविरा करना चाहती है !

जैसे ही इस पत्र का खुलासा हुआ, कांग्रेस ने ‘आप’ को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया  और आप अपना सा मुँह लिए रह गए ! फलत: आपको पीछे कदम हटाना पड़ा और आपको अपने सदस्यों से माफी भी माँगनी पड़ी ! इस सबके बावजूद भी कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने और कांग्रेस से अलग हुए विधायको का भी समर्थन लेने का काम जारी रहा जिसका खुलासा राजेश गर्ग के ‘स्टिंग टेप’ से हुआ कि आप किस तरह कांग्रेस के उन टूटे हुए विधायकों को साथ लेकर सरकार बनाना चाहते थे जिनके लिए आपने खुद इस तरह की बात कही थी कि भा.ज.पा. ने उन्हें ४ -४ करोड में खरीदा है ! आश्चर्य है कि आप कैसे इस तरह के लोगो के साथ सरकार बनाने की बात सोच भी सके? और यह सब सदन भंग होने तक नवंबर के अंत तक चलता रहा ! नवम्बर में आपने निखिल डे को बुलाया और कहा कि वे राहुल गांधी से कांग्रेस पार्टी द्वारा हमें समर्थन दिए जाने की बाबत बात करें ! लेकिन उन्होंने  कहा कि वे इस सम्बन्ध में राहुल गांधी से कोई बात नहीं कर सकते! क्या आप इनमें से किसी भी तथ्य को नकार सकते हैं? ये सब यह दर्शाता है कि आप किसी भी कीमत पर अपनी पार्टी के लोकतांत्रिक नियमों को तोडते हुए, बहुमत के विरुद्ध जाकर और उन विधायको का, जिन्हें आपने खुद भ्रष्ट करार दिया था -अनैतिक रूप से समर्थन प्राप्त करके, ‘सत्ता’ हासिल करने के लिए कितने आतुर थे !!!

उसके बाद साम्प्रदायिकता भड़काने वाले पोस्टरों का मामला उठा ! आपके निर्देश के तहत  दिलीप पांडे द्वारा दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाके में एक ऐसा पोस्टर लगाया गया, जिसमे कांग्रेस के मुस्लिम विधायक अपने धर्म के साथ विश्वासघात करते दिखाये गए और जिसके कारण दिलीप पांडे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया ! उस वक्त पार्टी ने अमानतुल्लाह खान के द्वारा पुलिस को यह लिखते हुए पत्र भिजवाया कि वह पोस्टर उसके द्वारा बनवाया गया था, न कि पार्टी के द्वारा ! उस समय आपने ट्वीट किया था कि पुलिस दिलीप पांडे को गिरफ्तार क्यों कर रही है, जबकि पुलिस को अमानतुल्लाह खान को गिरफ्तार करना चाहिए ! इसके बाद एक सप्ताह के अंदर अमानतुल्लाह खान ओखला निर्वाचन क्षेत्र का प्रभारी बना दिया गया और उसे टिकिट देने का वायदा भी किया और अंत में उसे टिकिट दिया भी गया ! क्या ये सब तरीके अनैतिक नहीं हैं ? 

इसके उपरांत ‘अवाम’ यानी ‘आम आदमी वौलेंटियर एक्शन मंच’ वाली ‘दुर्घटना सामने आई ! यह वो समूह था जिसका संगठन स्वयं सेवको की आवाज़ की सुनवाई के लिए हुआ था ! क्योंकि स्वयं सेवको में इस भावना के चलते कि उन्हें गुलामों की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, विद्रोह भडक जाने का अंदेशा आपको नज़र आने लगा था और आप इस उनकी इस सोच को कुचल देना चाहते थे ! सो आपने एक ‘खेल’ खेला ! आपने ‘अवाम’ संगठन के नाम एक छद्म एस.एम.एस भिजवाया कि ‘आप’ के स्वयं सेवक भा.ज.पा. से जुड जाए, जिससे यह लगे की ‘अवाम’ संगठन भा.ज.पा का एजेंट बन गया है ! जबकि वो एस.एम.एस पार्टी द्वारा ही गढ कर ‘फर्जी अवाम’ नाम से भेजा गया था ! इस छल-कपट नीति के तहत आपने गूगल हैन्गाउट पे घोषित किया ‘अवाम’ संगठन के लोग विश्वासघाती हो गए हैं जिसका प्रमाण वह एस.एम.एस है ! इसके चलते करन सिंह, जो ‘अवाम’ का नेता था उसे निलंबित करके पार्टी से निकाल दिया गया ! उसने ‘राष्ट्रीय अनुशासन समिति’ जिसका प्रभारी अधिकारी मैं था, वहाँ दरख्वास्त करते हुए बताया कि ‘वह एस.एम.एस. उसके द्वारा नहीं भेजा गया और इस मामले की अच्छी तरह जाँच की जाए! ‘  तब मैंने आपसे, दिलीप पांडे व अन्य कुछ लोगो से जाँच-पड़ताल की बात कही, लेकिन आपने दृढतापूर्वक मना कर दिया ! अंत में करन सिंह को पुलिस में एफ.आई.आर दर्ज़ करनी पड़ी, पुलिस ने मामले की बारीकी से छान-बीन की तो पाया कि पार्टी के ‘दिलीप चौधरी’ नाम के एक स्वयं-सेवक ने ‘फर्जी अवाम’ नाम से वह एस.एम.एस. भेजा था न कि वास्तविक ‘अवाम’ संगठन ने ! अरविंद जी आपको  मालूम होना चाहिए कि किसी को बदनाम करने के लिए, इस तरह के छद्म नाम से हरकते करने वाला संगठन हो अथवा व्यक्ति - गंभीर दंडनीय अपराध का भागी होता है ! यह एक खेद का विषय कि दुर्भाग्य से युवा स्वयंसेवको को आपके मार्गदर्शन में इस तरह की छल-कपटपूर्ण बाते सिखाई जाती हैं कि इस तरह के गलत और फरेबी तरीके अपनाना राजनीति मे जायज़ है और इन्ही के बल पर राजनीति में पसरी ‘बड़ी बुराई’ को परास्त किया जा सकता है !

इसके बाद यह मुद्दा उठा कि महाराष्ट्र और हरियाणा में विधान-सभा चुनाव कराये जाने चाहिए कि नहीं ? इस पर फिर से राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में इ-मेल द्वारा प्रस्ताव रखा गया और 15 -4 के अनुपात से यह बहुमत सामने आया कि पार्टी के ‘स्वराज’ के सिद्धांत के तहत चुनाव का मामला प्रांतीय ईकाइयो  की  इच्छा पे छोड़ दिया जाना चाहिए ! लेकिन आपने बहुमत के उस निर्णय को लागू नहीं होने दिया ! आखिरकार, ये सब करना व्यर्थ ही गया क्योंकि तब तक चुनाव एकदम पास आ गए थे, और अंतत: संगरूर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक में  यह निश्चित किया गया कि उन दो राज्यों मे चुनाव की कोई तुक नहीं और उन्हें चुनाव लडने  की बात को भूल जाना चाहिए !

जब दिल्ली में चुनाव किए जाने की घोषणा हुई और उसके लिए चुनाव अभियान शुरू हुआ तो आपने  स्वयं सेवको  को निर्देश दिए कि ‘Modi for PM, Kejriwal for CM’का अभियान शुरू किया जाए ! मैंने तुरंत आपत्ति जताते हुए कहा कि यह सरासर असैद्धांतिक है ! इसका मतलब ये है कि हमारी पार्टी मोदी जी के आगे घुटनों के बल झुक गई है, जबकि पार्टी मोदी के खिलाफ ‘प्रमुख विपक्षी’ के रूप में डटकर खडी है !
 इसके बाद जब दिल्ली में 2015 के विधान-सभा चुनावके लिए प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो मैंने देखा कि उसमें कोई पारदर्शिता नाम की चीज़ नहीं थी ! वरन पूर्व नीति के ठीक विपरीत, हम वेबसाईट पर प्रत्याशियों के नाम पोस्ट नही कर रहे थे ! यहाँ तक पी.ऐ.सी. के पास प्रत्याशियों के नाम और बायोडाटा आदि जाँच-पड़ताल के बाद अनुमोदन हेतु नहीं भेजे  जा रहे थे ! अत: पी.ऐ.सी. की दूसरी बैठक में मैंने इस मसले को उठाया क्योंकि मेरे पास दो प्रत्याशियों के विरुद्ध शिकायते आई  थी जिनके नाम पिछली बैठक में प्रस्तावित किए गए थे ! यह सुनकर आप बहुत क्रोधित हो उठे और बोले - ‘आप सोचते है कि हम धूर्त और कुटिल लोगो का चयन कर रहे है?’ मैंने कहा बात ये नहीं है ! बात ये है कि हमें पारदर्शिता और छान-बीन करने की मेहनत से पीछे नहीं हटना चाहिए ! इस बात पर आपके और मेरे बीच अच्छी खासी बहस हुई और मैं उस बैठक से उठ कर चला गया व 27नवम्बर को मैंने एक इ-मेल लिख कर भेजा कि मैं प्रत्याशियों के संदेहास्पद और अपारदर्शी चयन प्रक्रिया की रबरस्टैम्प (मुहर) नहीं बन सकता ! वह इ-मेल आज जनता के बीच है !

इसके बाद नामों की दूसरी सूची में प्रत्याशियों के दस नामों में चार नाम संदिग्ध से लगने वाले लोगों के थे ! योगेन्द्र यादव ने और मैंने 10दिसम्बर को पी.ए.सी. को उन चार प्रत्याशियों से जुडी आपत्तियों के बारे मेंविस्तार से एक पत्र लिख के भेजाऔर यह भी लिखा कि इस बार चयन प्रक्रिया पिछली बार से बहुत अधिक  भिन्न है !इस बार हमें  लगता है कि राजनीतिक ठेकेदारों को टिकिट दिए जा रहे है, जो सिर्फ़ अवसरवादिता के लिए पार्टी में आए हैं, ये वे लोग हैं, जो अंतिम पलों मे कांग्रेस, भा.ज.पा और ब.स.पा. से अलग हो गए थे ! जिनकी हमारी पार्टी के प्रति न ही किसी तरह की वैचारिक प्रतिबद्धता है और न उनके पास जनता की सेवा का या जनहित में की गई किसी तरह की गतिविधियों का लेखा-जोखा है, न ही उन्होंने अपने आर्थिक स्रोतों का ब्यौरा प्रस्तुत किया है ! उनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ लोगों में पैसा और शराब बाटने, व हमारे स्वयम-सेवको को पीटने की शिकायते मौजूद है ! बहरहाल, यह बात उठाने पर उनमें से एक जिसे आपने वज़ीरपुर क्षेत्र से प्राथमिकता के साथ चुना था - वह उम्मीदवारी की घोषणा के ४ घंटे के अंदर ही वापिस भा.ज.पा. में चला गया ! इसी तरह महरौली सीट के लिए आपकी पहली पसंद, ‘गंदास’ को भी आखिरी पल मे छोडना पड़ा क्योंकि उसकी एक हाथ में शराब और दूसरे में रिवाल्वर के साथ तस्वीर संचरित की गई थी ! पर जब उसे छोड़ा, तो उसके भाई को टिकिट दे दिया गया ! अंत में उसका नाम भी ख़ारिज किया गया क्योंकि पार्टी के लोकपाल एडमिरल रामदास ने उसके विरुद्ध पक्की नकारात्मक जानकारी दी थी !
 इसके उपरांत, जब हमने पत्र भेजा, तो ‘आप’ ने पी.ए.सी की बैठके बुलाना और पी.ए.सी द्वारा प्रत्याशियों के नाम अनुमोदन हेतु भेजने ही बंद कर दिए और अपनी ओर से नाम घोषित करने लगे ! जब ये सब हुआ तो, मैंने कहा - ‘बस बहुत हो लिया, अगर अब इस तरह की अवांछित गतिविधियां नहीं थमी, प्रत्याशियों की उचित विश्वसनीय जाँच-पडताल नही की गई तो, मैं स्तीफा दे दूँगा तथा जनता के सामने अपने इस्तीफे की वजह का खुलासा करूँगा !’ इस पर 4जनवरी को मेरे घर पर योगेन्द्र यादव, पृथ्वी राज रेड्डी आदि के द्वारा एक आपातकालीन बैठक रखी गई, जिसमे पार्टी के जिम्मेदारपदाधिकारी व पूरे देश के लगभग 16-17लोगों ने भागीदारी की ! सभी ने महसूस किया और कहा कि यदि इस वक्त आप स्तीफा देंगें, तो सारा अभियान बरबाद होकर, ध्वस्त हो जाएगा ! उस बैठक में मैंने कहा - ‘देखिये, जब इस तरह के समझौते किए जाते हैं, तो बहुत से नैतिक कोने स्वत: ही कट जाते हैं, मर जाते हैं और इस समय आप प्रत्याशियों का चयन पारदर्शिता और जाँच-पडताल के बिना कर रहे हैं!’ अगर आप इस तरह के प्रत्याशियों के साथ चुनाव में उतरते है और एकबारगी मानिये कि आप जीत भी जाते हैं, तो आगे आपको जिस तरह के समझौते करने पड़ेगें, वे ऐसे होंगें, जो आपकी पार्टी के ‘यू..एस.पी.’ को पूरी तरह विनष्ट कर देगें, जिससे ‘साफ़-सुथरी और पारदर्शी पार्टी का वैकल्पिक राजनीति से गठबंधन’ जैसी छवि सामने आएगी ! ऐसे गलत  प्रत्याशियों को साथ लेकर चुनाव जीतने से बेहतर है, साफ छविवाले एवं इज्जतदार प्रत्याशियों के साथ चुनाव हार जाना ! मेरे इस सीधे कथन को तोड़-मरोड़ कर आपने मेरे खिलाफ़ यह प्रचार लिया कि मैं चाहता था कि ‘आप’ चुनाव हर जाए! क्योंकि मौकापरस्त प्रत्याशियों व गलत तरीको के साथ चुनाव जीतने पर कुछ ही समय में पार्टी के आधारभूत सिद्धांत विनष्ट हो जाते और आगे भविष्य में ये लोग पार्टी को पूरी तरह ध्वस्त कर देते ! अगर मैं ‘आप’ की हार चाहता तो, सबसे पहले उसी समय स्तीफा देकर जनता के बीच जाकर अपने स्तीफे का कारण बयान करता ! इसी तरह, अगर योगेन्द्र यादव सच में पार्टी की हार चाहते तो उन्होंने आप सबकी बैठक न बुलाई होती और मुझे जनता के बीच  सब कुछ कहने से न रोका होता ! बल्कि उलटे उन्होंने तहेदिल से चुनाव-अभियान केलिए काम किया, अनगिनत मौको पर टीवी  पे, पार्टी का बचाव किया ! इतना करने पर भी आपने मेरे साथ, उन  पर भी  पार्टी की हार की कामना करने का दोष मढने की गुस्ताखी की ! उस बैठक  के अंत में इन सब बिंदुओं पे सोच-विचार और चर्चा के बाद आपके द्वारा बाकायदा अभिव्यक्त सहमति से तय हुआ कि: हम सब तुरंत चयनित प्रत्याशियों के विरुद्ध सभी शिकायतों को पार्टी ‘लोकपाल’ के पास भेज देंगे और उसका निर्णय अंतिम माना जायेगा तथा पार्टी में भर्ती संबंधी सुधार, पारदर्शिता, जवाबदेही, स्वराज, पार्टी की आतंरिक लोकतांत्रिकता - इन सब विषयों पर चुनावो के तुरंत बाद विचार किया जायेगा !
 इस प्रकार, उन 12 प्रत्याशियों के नाम अविलम्ब ‘लोकपाल’ को भेज दिए गए ! जल्द से जल्द चार दिनों के अंदर छान-बीन की  यह कवायद करनी थी ! लोकपाल  ने दो लोगो के हटाये जाने की  संस्तुति की जिनके विरुद्ध स्पष्ट प्रमाण मौजूद थे, जिन छह  के खिलाफ कुछ कम प्रमाण थे, उन्हे चेतावनी दिए जाने की संस्तुति की  और चार को पार्टी में बनाए रखने के लिए कहा !  जिन पर संदेह था,  वे दो  संदिग्ध प्रत्याशी हटा दिए गए ! लेकिन नए लोगों की पार्टी में भर्ती संबंधी सुधारों के  मुद्दे  - जिन पे  चुनाव के बाद दो दिनों के बाद , चर्चा होनी थी, वह नहीं हुई ! इसके बजाय, 26  फरवरी की  राष्ट्रीय कार्यकारणी की  बैठक, जिसमें आपने  न आना तय किया,  वह  कुमार विश्वास द्वारा आपके इस्तीफे की घोषणा और आपकी मंडली के सदस्यों द्वारा, ‘बिना नियम के’ योगेन्द्र और मुझ पे प्रहार के साथ आरम्भ हुई ! आपकी ओर से उन्होंने जो संदेश दिया था, उससे स्पष्ट था कि संयोजक के रूप में आपके बने रहने की कीमत, पी.ऐ.सी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति से हमारे निष्कासन द्वारा चुकाई गई थी ! तब मैंने उस बैठक में सबके सामने, ऊपर कही गई बाते कही थीं और अफसोस की बात कि भर्ती संबंधी सुधारों के मुद्दों पे तब भी कोई चर्चा नहीं की गई ! उस दिन जिस बिंदु पे चर्चा की गई, वह ये था कि आप संयोजक पद पे रहे या न रहे ? हम सबने सहमति दी कि आप संयोजक के रूप में बने रहे ! लेकिन उसके बाद कुछ लोग आपसे मिलने आपके घर चले गए ! जिनके साथ आपने यह निश्चित किया कि हमें पार्टी से हटा दिया जाए और ऐसा ही 4 मार्च को आयोजित अगली बैठक में हुआ !

        मेरे खिलाफ़ एक आरोप यह लगाया कि मैंने चुनाव अभियान में भागीदारी नहीं की ! मैं पहले ही बता चुका था कि जिस तरह से प्रत्याशी चुने गए थे, मैं उनके लिए चुनाव अभियान में साथ नहीं दे सकता ! मैं सिर्फ़ उनके लिए चुनाव प्रचार करने को तैयार था को जो अगर चुनाव जीते तो, वे पार्टी की स्वच्छ राजनीति की आदर्श अवधारणा और विचारधारा को आगे ले जायेगे तथा जनहित में काम करेगें ! मैंने उन पाँच लोगों की नाम-सूची भी दी जो मेरी नज़र में हर तरह से शिष्ट और योग्य थे ! लेकिन पार्टी ने मेरे पास जन-सभा को संबोधित करने के सम्बन्ध में कोई रूपरेखा ही नहीं भेजी !  इसलिए मैं पंकज पुष्कर जी के व्यक्तिगत बुलावे पर उनकी जनसभाओं मे गया ! गोपाल रॉय ये व्यर्थ का झूठ बोल रहे है कि मैं वायदा करके भी उनकी सभा में जाने से पीछे हट गया ! वस्तुत: जिस दिन उन्होंने मुझे बुलाया था, मैं कालीकट में था, जहाँ मैं पार्टी बैठक और संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहा था जिसमें मैंने  दोहराया था कि दिल्ली के मुख्य मंत्री के लिए किरण बेदी का चयन सही और उचित नहीं था !

 एक दूसरा आरोप मेरे खिलाफ यह लगाया गया कि मैंने लोगों को ‘आप पार्टी’ के लिए धन दान करने से रोका ! जब भी लोगो ने मुझसे पूछा कि उन्हें पार्टी के लिए धन दान करना चाहिए आदि तो, मैंने कहा – ‘आप उन लोगो के लिए दान करें, जो आपको  ईमानदार और शिष्ट लगे !’  आपने और आपकी मंडली ने ऐसा ही आरोप मेरी बहन शालिनी गुप्ता के खिलाफ भी लगाया ! मेरी बहन ने भी अपने निकट के जानकार लोगों से वे ही बाते कही, जो मैंने कही थी ! सच्चाई ये है कि उसने बड़ी दृढ़ता से विदेश में बसे लोगों को, योग्य प्रत्याशियों के लिए आर्थिक सहायता देने के लिए प्रोत्साहित किया था इसलिए ही अनेक प्रत्याशियों को विदेश में बसे भारतीयों द्वारा बड़ी धन-राशि प्राप्त हुई थी !

आपने अपने भाषण में बहुत ही कलाकारी के साथ झूठे ब्यौरे पेश करते हुए कहा कि मैं किस तरह आपको जेल भेजने के लिए जिम्मेदार था ! जबकि सच्चाई ये है कि गडकरी –बदनामी के मुकदमे के तहत आपने खुलेरूप से जनता के बीच कहा था कि ‘बेल लेने से बेहतर जेल जाना’! जब मुकदमे की सुनवाई हुई तो जज साहिबा ने आपको अच्छी तरह से समझाया कि ‘व्यक्तिगत मुचलके’ का अर्थ क्या होता है ! आपने मुझसे सुनिश्चित किया कि जज साहिबा ने जो व्याख्या की है क्या वह सही है जिसका मैंने सकारात्मक हामी में जवाब दिया ! तब भी अपनी और साथ ही पार्टी की जन-छवि के लिए आपने ‘व्यक्तिगत मुचलका’ भरने के बजाय  जेल जाना बेहतर समझा ! फिर भी मैंने और मेरे पिता ने कोर्ट में और जनता के बीच आपके निर्णय के पक्ष में पैरवी की और कहा कि इस वाकये से इस बात पर प्रकश पड़ता है कि इस तरह के मुकदमों में जनता से जुड़े मसले पर बेल या व्यक्तिगत बेल के लिए कहना, एक अनावश्यक मांग है ! हम दोनों आपसे जेल मे जाकर मिलने में अनेक घंटे बिताते थे, आपको विकल्पों के बारे में बताते थे, और आपको मुचलका भरने के लिए मनाते थे ! उसके बाद आप इसके लिए किसी तरह तैयार हुए ! 

         आपकी मण्डली ने मेरे पिता और मेरी बहन और मुझ पर यह इलज़ाम भी लगाया कि हम पार्टी को हडपना चाहते थे ! अरविंद, आप ये अच्छी तरह जानते हैं कि हम में से किसी ने भी कभी भी अपने लिए या किसी मित्र या पारिवारिक सदस्य के लिए किसी तरह का  कार्यकारी पद या टिकिट नहीं चाहा ! हमने सदा इस बात के लिए अपनी ओर से योगदान किया और हर सम्भव तरीके से मदद दी कि पार्टी देश में वैकल्पिक राजनीति की एक सशक्त और विश्वसनीय संवाहक के रूप में फले-फूले और आगे बढ़े ! मेरे पिता ने पार्टी के लिए दो करोड  ‘बीज धन राशि’ के रूप में देने के अलावा न जाने कितना समय पार्टी हित में, निस्वार्थ,  कानूनी व अन्य तरह के मशविरे देने में लगाया ! जनलोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार करने में उन्होंने अहम भूमिका  निभाई ! उन्होंने ने ‘तन,मन,धन’ से पार्टी के भले के लिए पूरे समर्पण से काम किया ! हाँ, जब उन्होंने अनेक कारणों की वजह से यह महसूस किया कि आप पार्टी का नेतृत्व करने के लिए सही व्यक्ति नहीं हैं, तो उन्होंने बेबाकी से आपको बता दिया ! ऊपर बताये गए, आपके अनैतिक समझौतों के अलावा उन्होंने महसूस किया कि आप पार्टी के सम्माननीय संविधान और नियमों को बारम्बार तोड़ रहे थे ! पार्टी के काम करने के ढांचे को रूपाकार नही दे रहे थे (सिवाय के अपनी मंडली के), इसी तरह पार्टी की नीतियों को भी बनाने में रूचि नही दिखा रहे थे !
दो वर्ष तक 34 नीति निर्धारण समितियों की विस्तृत रिपोर्ट जो हमने तैयार की थी - वह धूल की परतों के नीचे दबी पड़ी रही क्योंकि न तो आपके पास समय था और न आपकी रुचि  थी कि आप उन रिपोर्टो पे एक नज़र डालते और उन पर अपना दिमाग लगाते ! आपने मेरे पिता को इस बात के लिए कोसा कि उन्होंने आपको किरण बेदी और अजय माकन के बाद मुख्य मंत्री पद के रूप में अंतिम तीसरी पसंद कहा ! ऐसा उन्होंने आपके व्यक्तित्व और चरित्र की   लगातार सामने आने वाली कमियों के कारण कहा जिनका वे लम्बे समय से निरीक्षण कर रहे थे ! पर मैंने  तुरंत जनता के बीच उनके कथन से अपनी असहमति जताई ! लेकिन बाद में जो  सारी असलियत बाहर निकल कर आई, विशेषरूप से राष्ट्रीय परिषद की बैठक के मंच पर जो  तानाशाही से भरा, अन्यायपूर्ण, अवहेलनापूर्ण और गैरजिम्मेदाराना रवैया आपने दिखाया, मुझे कहते हुए खेद है कि मेरे पिता सही थे!

मेरी बहन शालिनी व अन्य अनेक उच्च योग्यता वाले लोगों ने अपनी बड़ी-बड़ी शानदार नौकरियाँ सिर्फ़ इसलिए छोड़ दी कि वे एक विश्वसनीय और सशक्त व्यवस्था बनाने में आपकी मदद करना चाहते थे, जिसमे विभिन्न मुद्दों के सह-संगठन और प्रत्येक के विशेष ज्ञाता हों  और भारत देश में एक विश्व स्तर की उत्तम व्यवस्था उभर कर आए ! अनेक बार आपने शालिनी को देश के लिए अपनी नौकरी छोड़ देने को कहा और यह स्पष्ट किया कि उसको सौंपा गया ‘संगठन विकास सलाहकार’ का कार्य सिर्फ़ सलाहकार की भूमिका है, न कि पार्टी के अंदर कोई औपचारिक पद है, जैसा कि उसकी नियुक्ति से पहले पी.ऐ.सी मे चर्चा की गई थी ! पर, यह बीतते समय के साथ स्पष्ट हो गया था कि आपको किसी भी विषय में विशेष सलाह चाहिए ही नहीं थी ! इसके बजाय अपने आशुतोष जिनके पास विशिष्ट योग्यता भी नहीं है, उनसे एक निदान स्वरूप योजना बनाने केलिए कहा, जिससे कि पार्टी का  हरेक ‘सेल’ आपकी मण्डली के लिए मददगार उप-अंग हो जाए और आप किसी के प्रति जवाबदेह न रहें ! मेरी बहन ने रात-दिन आपकी पार्टी के लिए मेहनत से काम किया और विदेशों में बसे भारतीयों को उदारता से  आपको आर्थिक सहायता देने के लिए सक्रिय किया और प्रोत्साहित किया, जो पार्टी की सफलता के लिए बड़ा योगदान सिद्ध हुआ ! आपकी पार्टी के कोष मे डाली गई आर्थिक सहायता का एक तिहाई हिस्सा विदेशों में बसे भारतीयों का योगदान है !

अरविन्द ये बात सही है कि पार्टी केलिए आपका जितना योगदान रहा, उतना मेरी ओर से नही रहा ! न तो मैंने अनशन किया और न मैं जेल गया ! मैं अधिकतर अपने महत्वपूर्ण मुकदमों और घोटालों 2G, कोलगेट, सी.बी.आई निदेशक, 4G, रिलाएंस गैस डकैती कांड, जी.एम फूड्स, न्यूक्लिअर पावर प्लांट, विध्वंसक हाइडल योजनाएं, धारा 66ए, तम्बाकू और गुटका, आदि में व्यस्त रहा ! लेकिन शेष समय में मैंने पार्टी हित में अपनी कानूनी सलाह व अन्य ज़रूरी सुझाव देने व कोर्ट संबंधी कार्रवाही करने में पूरा योगदान किया ! मैं पार्टी के अंदर कभी भी किसी पद को पाने के लिए इच्छुक नहीं रहा सिवाय के पार्टी के आधारभूत सिद्धांतों के प्रति अपनी ईमानदारी और प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध रहा ! और अपने इस स्वभाव व प्रतिबद्धता के कारण मैंने जब भी पार्टी को अपने रास्ते से भटकते देखा तो, हमेशा आवाज़ उठाई !

मैं उसी सच्चाई के साथ आपसे कहना चाहता हूँ कि आपको निर्णय लेने वाले समूहों खासतौर से पी.ए.सी और राष्ट्रीय परिषद में ऐसी स्वतंत्र विचारशील और विश्वसनीय आवाज़ वाले लोग चाहिए जो इतने दमदार हों कि जब आप गलत हों, तो वे खड़े होकर आपको बता सके और शुभचिंतक की तरह बेहिचक आपका मार्गदर्शन कर सके ! इस गुण और साहस के कारण मैं और मेरा  परिवार आपको परेशानियां खड़ा करने वाला, अडंगे लगाने  तथा पार्टी को खत्म करने  वाला लगा, जबकि  सच्चाई  इसके विपरीत थी !  अरविंद आप यह जान ले कि आप ‘जी  हुजूरी’  करने वालो को साथ लेकर  बहुत  दूर  तक रास्ता तय नहीं कर सकते ! किन्तु यदि  फिर भी आप ऐसा  करने पे आमदा  होंगे, तो पार्टी  सिर्फ़ ध्वस्त ही नहीं होगी, बल्कि आप जिस तरह की  सभ्यता-संस्कृति, पार्टी की ज़मीन में बो रहे है, उसके चलते, आप  बहुत दूर तक भी शायद ही जा सकेगें !

अरविन्द, यह पार्टी हजारो लोगो द्वारा ‘आदर्शो’ की नींव पर खडी की गई थी ! खासतौर से युवा लोगो के द्वारा जिन्होंने देश में एक वैकल्पिक साफ़ सुथरी पार्टी का अनूठा रथ तैयार करने के लिए, राजनीति मे पारदर्शिता का अह्वान करने के लिए अपना बहुत अधिक समय, मेहनत, उर्जा,धन और खून-पसीना बहाया ! पर दुर्भाग्य से वे सारे आदर्श और सिद्धांत आपके और आपकी चाटुकार मंडली द्वारा छले गए ! वे सारे ‘जी हुजूरी’ करने वाले आपके शिकंजे मे हैं  और परिणामस्वरूप आपकी पार्टी, तानाशाही और राजशाही सभ्यता की ओर उन्मुख पार्टी बनती  जा रही है!

देहली का चुनाव ज़बरदस्त बहुमत से जीतने के बाद, आपको अपने सर्वोत्तम गुण बढ़ाने और सामने लाने चाहिए थे, लेकिन अफ़सोस के, आप के निकृष्टतम अवगुण एक-एक करके देश और विश्व के लोगो के सामने आ रहे हैं ! अब दुर्भाग्य से आपके सबसे सघन दुर्गुण सामने आए है ! जैसे लोकपाल का, हमारा व कुछ अन्य निर्दोष लोगो का पार्टी से निष्कासन ! स्टालिन के रूस  और वर्तमान बदहाली मे जी  रही आपकीअपनी पार्टी की समानता पे नज़र डालने के लिए, आपको जॉर्ज ऑरवेल के ‘एनीमल फार्म’ उपन्यास को पढ़ना चाहिए ! ईश्वर और इतिहास आपको  उसके लिए कभी माफ़ नहीं करेगा, जो आप आज अपनी पार्टी के साथ कर रहे हैं !

क्या आपको विश्वास है कि आपके पास जो पाँच वर्ष हैं, उनमें आप देहली सरकार को चला कर, सब कुछ सुधार सकते हैं? यदि आप सोचते है कि आपने सुगठित प्रशासन प्रदान किया तो क्या लोग वो सब भूल जायेगे जो आपने पार्टी के लिए समर्पित और अनुभवी शुभ चिंतकों के साथ किया ? मैं दुआ करता हूँ कि आप अपने प्रयासों मे सफल होए ! ऎसी बात नहीं, यहाँ तक कि पीढियों से चले आ रहे, भा.ज.पा और कांग्रेस जैसे दलों ने भी सुगठित प्रशासन दिया है ! लेकिन  जिस स्वप्न को साथ लेकर हम चले थे - स्वच्छ एवं आदर्श सिद्धान्तोवाली ‘राजनीति’ और भ्रष्टाचार मुक्त ‘प्रशासन’ वह कही अधिक ऊंचे कद का और आकाश जैसा विशाल था ! मुझे डर है कि अब हाल ही में आपने जिस तरह का व्यवहार और अपने चरित्र के लक्षण दिखाए हैं, उसकी वजह से ‘आम आदमी पार्टी’ जिस साफ-सुथरी आदर्शवादी राजनीति के खूबसूरत सपने पर नींव रखी गई थी, वह ‘दु:स्वप्न’ मे न बदल जाए ! फिर भी मै दुआ करता हूँ आप के साथ सब ठीक रहे !

अशेष शुभकामनाओं के साथ अलविदा !
प्रशांत भूषण





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Wednesday, 11 March 2015

योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण जी का आम आदमी पार्टी वालंटियर के नाम खुला पत्र

प्यारे दोस्तों,

हमें पता है कि पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से देश और दुनिया भर के आप सभी कार्यकर्ताओं के दिल को बहुत ठेस पहुँची है. दिल्ली चुनाव की ऐतिहासिक विजय से पैदा हुआ उत्साह भी ठंडा सा पड़ता जा रहा है. आप ही की तरह हर वालंटियर के मन में यह सवाल उठ रहा है कि अभूतपूर्व लहर को समेटने और आगे बढ़ने की इस घड़ी में यह गतिरोध क्यों? कार्यकर्ता यही चाहते हैं कि शीर्ष पर फूट हो, कोई टूट हो. जब टीवी और अखबार पर पार्टी के शीर्ष नेताओं में मतभेद की खबरें आती हैं, आरोप-प्रत्यारोप चलते हैं, तो एक साधारण वालंटियर असहाय और अपमानित महसूस करता है. इस स्थिति से हम भी गहरी पीड़ा में हैं.

पार्टी-हित और आप सब कार्यकर्ताओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हम दोनों ने पिछले दस दिनों में अपनी तरफ से इस आरोप-प्रत्यारोप की कड़ी में कुछ भी नहीं जोड़ा. कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब दिए, लेकिन अपनी तरफ से सवाल नहीं पूछे. हमने कार्यकर्ताओं और समर्थकों से बार-बार यही अपील की कि पार्टी में आस्था बनाये रखें. व्यक्तिगत रूप से हम सबकी सीमाएं होती हैं लेकिन संगठन में हम एक-दूसरे की कमी को पूरा  कर लेते हैं. इसीलिए संगठन बड़ा है और हममें से किसी भी व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण है.  इसी सोच के साथ हमने आज तक पार्टी में काम किया है और आगे भी काम करते रहेंगे.

लेकिन कल चार साथियों (सर्वश्री मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, गोपाल राय और पंकज गुप्ता) के सार्वजनिक बयान के बाद हम अपनी चुप्पी को बहुत ही भारी मन से तोड़ने पर मजबूर हैं. राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बहुमत की राय मुखरित करने वाले इस बयान को पार्टी के मीडिया सेल की ओर से प्रसारित किया गया, और पार्टी के आधिकारिक फेसबुक, ट्विटर और वेबसाइट पर चलाया गया. ऐसे में यदि अब हम चुप रहते हैं तो इसका मतलब यही निकाला जायेगा कि इस बयान में लगाये गए आरोपों में कुछ कुछ सच्चाई है. इसलिए हम आप के सामने पूरा सच रखना चाहते हैं.

आगे बढ़ने से पहले एक बात स्पष्ट कर दें. उपरोक्त बयान में हम दोनों के साथ शांति भूषण जी को भी जोड़ कर कुछ आरोप लगाये गए हैं. जैसा कि सर्वविदित है, दिल्ली चुनाव से पहले शांति भूषण जी ने कई बार ऐसे बयान दिए जिससे पार्टी की छवि और पार्टी की चुनावी तैयारी को नुकसान हो सकता था. उनके इन बयानों से पार्टी के कार्यकर्ताओं में निराशा और असंतोष पैदा हुआ. ऐसे मौकों पर हम दोनों ने शांति भूषण जी के बयानों से सार्वजनिक रूप से असहमति ज़ाहिर की थी. चूँकि इन मुद्दों पर हम दोनों की राय शांति भूषण जी से नहीं मिलती है, इसलिए बेहतर होगा कि उनसे जुड़े प्रश्नों के उत्तर उनसे ही पूछे जाये.

इससे जुड़ी एक और मिथ्या धारणा का खंडन शुरू में ही कर देना जरूरी है. पिछले दो हफ्ते में बार-बार यह प्रचार किया गया है कि यह सारा मतभेद राष्ट्रीय संयोजक के पद को लेकर है. यह कहा गया कि अरविंद भाई को हटाकर योगेन्द्र यादव को संयोजक बनाने का षड्यंत्र चल रहा था. सच ये है कि हम दोनों ने आज तक किसी भी औपचारिक या अनौपचारिक बैठक में ऐसा कोई जिक्र नहीं किया. जब 26 फरवरी की बैठक में अरविंद भाई के इस्तीफे का प्रस्ताव आया तब हम दोनों ने उनके इस्तीफे को नामंजूर करने का वोट दिया. और कुछ भी मुद्दा हो, राष्ट्रीय संयोजक का पद तो मुद्दा था, है.

यह सच जानने के बाद सभी वालंटियर पूछते हैंअगर राष्ट्रीय संयोजक पद पर विवाद नहीं था तो आखिर विवाद किस बात का? इतना गहरा मतभेद शुरू कैसे हुआ?” हमने यथासंभव इस सवाल पर चुप्पी बनाये रखी, ताकि बात घर की चारदीवारी से बाहर ना जाए. लेकिन अब हमें महसूस होता है कि जब तक आपको यह पता नहीं लगेगा तब तक आपके मन में भी संदेह और अनिश्चय पैदा हो सकता है. इसलिए हम नीचे उन मुख्य बातों का ज़िक्र कर रहे हैं जिनके चलते पिछले दस महीनो में अरविन्द भाई और अन्य कुछ साथियों से हमारे मतभेद पैदा हुए. आप ही बताएं, क्या हमें यह मुद्दे उठाने चाहिए थे या नहीं?

1.    लोक-सभा चुनाव के परिणाम आते ही अरविंद भाई ने प्रस्ताव रखा कि अब हम दुबारा कॉंग्रेस से समर्थन लेकर दिल्ली में फिर से सरकार बना लें. समझाने-बुझाने की तमाम कोशिशों के बावजूद वे और कुछ अन्य सहयोगी इस बात पर अड़े रहे. दिल्ली के अधिकाँश विधायकों ने उनका समर्थन किया. लेकिन दिल्ली और देश भर के जिस-जिस कार्यकर्ता और नेता को पता लगा, अधिकांश ने इसका विरोध किया, और पार्टी छोड़ने तक की धमकी दी. पार्टी ने हाई कोर्ट में विधानसभा भंग करने की मांग कर रखी थी. यूँ भी कॉंग्रेस पार्टी लोक सभा चुनाव में जनता द्वारा खारिज की जा चुकी थी. ऐसे में कॉंग्रेस के साथ गठबंधन पार्टी की साख को ख़त्म कर सकता था. हमने पार्टी के भीतर यह आवाज़ उठाई. यह आग्रह भी किया कि ऐसा कोई भी निर्णय पी..सी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की राय के मुताबिक़ किया जाए. लेकिन लेफ्टिनेंट गवर्नर को चिट्ठी लिखी गयी और सरकार बनाने की कोशिश हुई. यह कोशिश विधान सभा के भंग होने से ठीक पहले नवंबर माह तक चलती रही. (यहाँ इस चिठ्ठी में कई और जगह हम पार्टी हित में कुछ गोपनीय बातें सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं) हम दोनों ने संगठन के भीतर हर मंच पर इसका विरोध किया. इसी प्रश्न पर सबसे गहरे मतभेद की बुनियाद पड़ी. यह फैसला हम आप पर छोड़ते हैं कि यह विरोध करना उचित था या नहीं. अगर उस समय पार्टी कॉंग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना लेती तो क्या हम दिल्ली की जनता का विश्वास दोबारा जीत पाते?

2.    लोक सभा चुनाव का परिणाम आते ही सर्वश्री मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और आशुतोष ने एक अजीब मांग रखनी शुरू की. उन्होंने कहा कि हार की जिम्मेवारी लेते हुए पी..सी के सभी सदस्य अपना इस्तीफा अरविन्द भाई को सौंपे, ताकि वे अपनी सुविधा से नयी पी..सी का गठन कर सके. राष्ट्रीय कार्यकारिणी को भंग करने तक की मांग उठी. हम दोनों ने अन्य साथियों के साथ मिलकर इसका कड़ा विरोध किया. (योगेन्द्र द्वारा पी. . सी. से इस्तीफे की पेशकश इसी घटना से जुडी थी)  अगर हम ऐसी असंवैधानिक चालों का विरोध करते तो हमारी पार्टी और कांग्रेस या बसपा जैसी पार्टी में  क्या फरक रह जाता ?

3.    महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड और जम्मू-कश्मीर में पार्टी के चुनाव लड़ने के सवाल पर पार्टी की जून माह की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी कार्यकर्ताओं का मत जानने का निर्देश दिया गया था. कार्यकर्ताओं का मत जानने के बाद हमारी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बहुमत की यह राय थी कि राज्यों में चुनाव लड़ने का फैसला राज्य इकाई के विवेक पर छोड़ देना चाहिए. यह अरविन्द भाई को मंज़ूर ना था. उन्होंने कहा कि अगर कहीं पर भी पार्टी चुनाव लड़ी तो वे प्रचार करने नहीं जायेंगे. उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय कार्यकारिणी को अपना फैसला पलटना पड़ा, और राज्यों में चुनाव लड़ने का फैसला हुआ. आज यह फैसला सही लगता है, उससे पार्टी को फायदा हुआ है. लेकिन सवाल यह है कि भविष्य में ऐसे किसी फैसले को कैसे लिया जाय? क्या स्वराज के सिद्धांत में निष्ठा रखने वाली हमारी पार्टी में राज्यों की स्वायतता का सवाल उठाना गलत है?

4.    जुलाई महीने में जब कॉंग्रेस के कुछ मुस्लिम विधायकों के बीजेपी में जाने की अफवाह चली, तब दिल्ली में मुस्लिम इलाकों में एक गुमनाम साम्प्रदायिक और भड़काऊ पोस्टर लगा. पुलिस ने आरोप लगाया कि यह पोस्टर पार्टी ने लगवाया था. श्री दिलीप पांडे और दो अन्य वालंटियर को आरोपी बताकर इस मामले में  गिरफ्तार भी किया. इस पोस्टर की जिम्मेदारी  पार्टी के एक कार्यकर्ता श्री अमानतुल्लाह ने ली, और अरविन्द भाई ने उनकी गिरिफ़्तारी की मांग की (बाद में उन्हें ओखला का प्रभारी और फिर पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया) योगेन्द्र ने सार्वजनिक बयान दिया कि ऐसे पोस्टर आम आदमी पार्टी की विचारधारा के खिलाफ हैं. साथ ही विश्वास जताया कि इस मामले में गिरफ्तार साथियों का इस घटना से कोई सम्बन्ध नहीं है. पार्टी ने एक ओर तो कहा कि इन पोस्टर्स से हमारा कोई लेना देना नहीं है, लेकिन दूसरी ओर योगेन्द्र के इस बयान को पार्टी विरोधी बताकर उनके खिलाफ कार्यकर्ताओं में काफी विष-वमन किया गया. आप ही बताइये, क्या ऐसे मुद्दे पर हमें चुप रहना चाहिए था?

5.    अवाम नामक संगठन बनाने के आरोप में जब पार्टी के कार्यकर्ता करन सिंह को दिल्ली इकाई ने निष्काषित किया, तो करन सिंह ने इस निर्णय के विरुद्ध राष्ट्रीय अनुशासन समिति के सामने अपील की, जिसके अध्यक्ष प्रशांत भूषण हैं. करन सिंह के विरुद्ध पार्टी-विरोधी गतिविधियों का एक प्रमाण यह था कि उन्होंने पार्टी वालंटियरों को एक एस.एम.एस भेजकर बीजेपी के साथ जुड़ने का आह्वान किया था. करन सिंह की दलील थी कि यह एस.एम्.एस फर्जी है, जिसे कि पार्टी पदाधिकारियों ने उसे बदनाम करने के लिए भिजवाया था. अनुशासन समिति का अध्यक्ष होने के नाते प्रशांत भूषण ने इस मामले की कड़ी जांच पर ज़ोर दिया, लेकिन पार्टी के पदाधिकारी टाल-मटोल करते रहे. अंततः करन सिंह के अनुरोध पर पुलिस ने जाँच की और एस.एम.एस वाकई फर्ज़ी पाया गया. पता लगा की यह एस.एम.एस दीपक चौधरी नामक वालंटियर ने भिजवाई थी. जाँच को निष्पक्ष तरीके से करवाने की वजह से उल्टे प्रशांत भूषण पर आवाम की तरफदारी का आरोप लगाया गया. इसमे कोई शक नहीं कि बाद में अवाम पार्टी विरोधी कई गतिविधियों में शामिल रहा, लेकिन आप ही बताइए अगर कोई कार्यकर्ता अनुशासन समिति में अपील करे तो उसकी निष्पक्ष सुनवाई होनी चाहिए या नहीं?

6.    जब दिल्ली चुनाव में उम्मीदवारों का चयन होने लगा तब हम दोनों के पास पार्टी कार्यकर्ता कुछ उम्मीदवारों की गंभीर शिकायत लेकर आने लगे. शिकायत यह थी कि चुनाव जीतने के दबाव में ऐसे लोगों को टिकट दिया जा रहा था जिनके विरुद्ध संगीन आरोप थे, जिनका चरित्र बाकी पार्टियों के नेताओं से अलग नहीं था. शिकायत यह भी थी की पुराने वालंटियर को दरकिनार किया जा रहा था और टिकट के बारे में स्थानीय कार्यकर्ताओं की बैठक में धांधली हो रही थी. ऐसे में हम दोनों ने यह आग्रह किया कि सभी उम्मीदवारों के बारे में पूरी जानकारी पहले पी..सी और फिर जनता को दी जाये, ऐसे उम्मीदवारों की पूरी जाँच होनी चाहिए और अंतिम फैसला पी..सी में विधिवत चर्चा के बाद लिया जाना चाहिए, जैसा कि  हमारे संविधान में लिखा है. क्या ऐसा कहना हमारा फ़र्ज़ नहीं था? ऐसे में हमारे आग्रह का सम्मान करने की बजाय हमपर चुनाव में अड़ंगा डालने का आरोप लगाया गया. अंततः हमारे निरंतर आग्रह की वजह से उम्मीदवारों के बारे में शिकायतों की जांच कि समिति बनी. फिर बारह उम्मीदवारों की लोकपाल द्वारा जाँच हुई, दो के टिकट रद्द हुए, चार को निर्दोष पाया गया और बाकि छह  को शर्त सहित नामांकन दाखिल करने दिया गया. आप ही बताइए, क्या आप इसे पार्टी की मर्यादा और प्रतिष्ठा बचाए रखने का प्रयास कहेंगे याकि पार्टी-विरोधी गतिविधि?

इन छह बड़े मुद्दों और अनेक छोटे-बड़े सवालों पर हम दोनों ने पारदर्शिता, लोकतंत्र और स्वराज के उन सिद्धांतों को बार-बार उठाया  जिन्हें लेकर हमारी पार्टी बनी थी. हमने इन सवालों को पार्टी की चारदीवारी के भीतर और उपयुक्त मंच पर उठाया। इस सब में कहीं पार्टी को नुकसान हो जाये, इसीलिए हमने दिल्ली चुनाव पूरा होने तक इंतज़ार किया और 26 फरवरी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में एक नोट के जरिये कुछ प्रस्ताव रखे.  हमारे मुख्य प्रस्ताव ये थे-

1.   पार्टी में नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए एक समीति बने, जो दो करोड़ वाले चेक और हमारे उम्मीदवार द्वारा शराब रखने के आरोप जैसे मामलों की गहराई से जाँच करे ताकि ऐसे गंभीर आरोपों पर हमारी पार्टी का जवाब भी बाकी पार्टियों की तरह गोलमोल दिखे.

2.   राज्यों के राजनैतिक निर्णय, कम से कम स्थानीय निकाय के चुनाव के निर्णय, खुद राज्य इकाई लें. हर चीज़ दिल्ली से तय हो.

3.   पार्टी के संस्थागत ढाँचे, आतंरिक लोकतंत्र का सम्मान हो और पी..सी एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकें नियमित और विधिवत हों.

4.   पार्टी के निर्णयों में वालंटियर्स की आवाज़ सुनने और उसका सम्मान करने की पर्याप्त व्यवस्था हो.

हमने इन संस्थागत मुद्दों को उठाया और इसके बदले में हमें मिले मनगढंत आरोप. हमने पार्टी की एकता और उसकी आत्मा दोनों को बचाने का हर संभव प्रयास किया और हम ही पर पार्टी को नुकसान पंहुचाने का आरोप लगा. आरोप ये कि हम दोनों पार्टी को हरवाने का षड्यंत्र रच रहे थे, कि हम पार्टी के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहे थे, कि हम संयोजक पद हथियाने का षड्यंत्र कर रहे थे. आरोप इतने हास्यास्पद हैं कि इनका जवाब देने की इच्छा भी नहीं होती. यह भी लगता है कि कहीं इनका जवाब देने से इन्हें गरिमा तो नहीं मिल जायेगी. फिर भी, क्यूंकि इन्हें बार-बार दोहराया गया है इसलिए कुछ तथ्यों की सफाई कर देना उपयोगी रहेगा ताकि आपके के मन में संदेह की गुंजाइश ना बचे. (पत्र लम्बा हो जाये इसलिए हम यहाँ प्रमाण नहीं दे रहे हैं. कुछ दस्तावेज योगेन्द्र की फेसबुक https://www.facebook.com/AapYogendra पर उपलब्ध हैं)


एक आरोप यह था की प्रशांत भूषण ने दिल्ली चुनाव में पार्टी को हरवाने की कोशिश की. दिल्ली चुनाव में उम्मीदवारों के चयन के बारे में जो सच्चाई ऊपर बताई जा चुकी है, इसे लेकर प्रशांत भूषण का मन बहुत खिन्न था. प्रशांत कतई नहीं चाहते थे की पार्टी अपने उसूलों के साथ समझौता करके चुनाव जीते. उनका कहना था कि गलत रास्ते पर चलकर चुनाव जीतना पार्टी को अंततः बर्बाद और ख़त्म कर देगा. उससे बेहतर ये होगा कि पार्टी अपने सिद्धांतों पर टिकी रहे, चाहे उसे अल्पमत में रहना पड़े.  उन्हें यह भी डर था अगर पार्टी को बहुमत से दो-तीन सीटें नीचे या ऊपर गयी तो वह जोड़-तोड़ के खेल का शिकार हो सकती है, पार्टी के ही कुछ संदेहास्पद उम्मीदवार पार्टी को ब्लेकमेल करने की कोशिश कर सकते हैं. ऐसी भावनाएं व्यक्त करना और पार्टी को हराने की दुआ या कोशिश करना, ये दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं. योगेन्द्र ने पार्टी को कैसे नुक्सान पंहुचाया, इसका कोई खुलासा आरोप में नहीं किया गया है. जैसा कि हर कोई जानता है, इस चुनाव में योगेन्द्र ने 80 से 100 के बीच जनसभाएं कीं, हर रोज़ मीडिया को संबोधित किया, चुनावी सर्वे किये और भविष्यवाणी की और कार्यकर्ताओं को फोने और गूगल हैंगआउट किये.

एक दूसरा आरोप यह है कि प्रशांत भूषण ने पार्टी के खिलाफ प्रेस कौन्फेरेंस करने की धमकी दी. सच यह है कि उम्मीदवारों के चयन से खिन्न प्रशांत ने कहा था कि यदि पार्टी उम्मीदवारों के चरित्र के जाँच की संतोषजनक व्यवस्था नहीं करती है तो उन्हें मजबूरन इस मामले को सार्वजनिक करना पड़ेगा. ऐसे में, योगेन्द्र यादव सहित पार्टी के पंद्रह वरिष्ठ साथियों ने प्रशांत के घर तीन दिन की बैठक की. फैसला हुआ कि संदेह्ग्रस्त उम्मीदवारों की लोकपाल द्वारा जाँच की जायेगी और लोकपाल का निर्णय अंतिम होगा. यही हुआ और लोकपाल का निर्णय आने पर हम दोनों ने उसे पूर्णतः स्वीकार भी किया. पार्टी को तो फख्र होना चाहिए कि देश में पहली बार किसी पार्टी ने एक स्वतंत्र व्यवस्था बना कर अपने उम्मीदवारों की जाँच की.

एक और आरोप यह भी है कि योगेन्द्र ने चंडीगढ़ में पत्रकारों के साथ एक ब्रेकफास्ट मीटिंग में हिन्दूअखबार को यह सूचना दी कि हरियाणा चुनाव का फैसला करते समय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के निर्णय का सम्मान नहीं किया गया. यह आरोप एक महिला पत्रकार ने टेलीफोन वार्ता में लगाया, जिसे गुप्त रूप से रिकॉर्ड भी किया गया. लेकिन इस कथन के सार्वजनिक होने के बाद उसी बैठक में मौजूद एक और वरिष्ठ पत्रकार, श्री एस पी सिंह ने लेख लिखकर खुलासा किया कि उस बैठक में योगेन्द्र ने ऐसी कोई बात नहीं बतायी थी. उन्होंने पूछा है कि अगर ऐसी कोई भी बात बताई होती, तो बाकी के तीन पत्रकार जो उस नाश्ते पर मौजूद थे उन्होंने यह खबर क्यों नहीं छापी? उनके लेख का लिंक http://www.caravanmagazine.in/vantage/indian-express-yogendra-yadav-indian-journalism है. आरोप यह भी है कि दिल्ली चुनाव के दौरान कुछ अन्य संपादकों को योगेन्द्र ने पार्टी-विरोधी बात बताई. यदि ऐसा है तो उन संपादकों के नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किये जाते?

फिर एक आरोप यह भी है कि प्रशांत और योगेन्द्र ने आवाम ग्रुप को समर्थन दिया. ऊपर बताया जा चुका है कि प्रशांत ने अनुशासनसमिति के अध्यक्ष के नाते आवाम के करन सिंह के मामले में निष्पक्ष जाँच का आग्रह किया. एक जज के काम को अनुशासनहीनता कैसे कहा जा सकता है? योगेन्द्र के खिलाफ इस विषय में कोई प्रमाण पेश नहीं किया गया. उल्टे, आवाम के लोगों ने योगेन्द्र पर ईमेल लिख कर आरोप लगाए जिसका योगेन्द्र ने सार्वजनिक जवाब दिया था. जब आवाम ने चुनाव से एक हफ्ता पहले पार्टी पर झूठे आरोप लगाये तो इन आरोपों के खंडन में सबसे अहम् भूमिका योगेन्द्र ने निभायी.

फिर भी चूंकि यह आरोप लगाये गए हैं, तो उनकी जांच जरूर होनी चाहिए. पार्टी का विधान कहता है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों के खिलाफ किसी भी आरोप की जाँच पार्टी के राष्ट्रीय लोकपाल कर सकते हैं. स्वयं लोकपाल ने चिट्ठी लिखकर कहा है कि वे ऐसी कोई भी जाँच करने के लिए तैयार हैं. हम दोनों लोकपाल से अनुरोध कर रहे हैं कि वे इन चारों साथियों के आरोपों की जांच करें. अगर लोकपाल हमें दोषी पाते हैं तो उनके द्वारा तय की गयी किसी भी सज़ा को हम स्वीकार करेंगे. लेकिन हमें यह समझ नहीं आता कि पार्टी विधान के तहत जांच करवाने की बजाय ये आरोप मीडिया में क्यों लगाये जा रहे हैं?

साथियों, यह घड़ी पार्टी के लिए एक संकट भी है और एक अवसर भी. इतनी बड़ी जीत के बाद यह अवसर है बड़े मन से कुछ बड़े काम करने का. यह छोटे छोटे विवादों और तू-तू मैं-मैं में उलझने का वक़्त नहीं है. पिछले कुछ दिनों के विवाद से कुछ निहित स्वार्थों को फायदा हुआ है और पार्टी को नुकसान.  उससे उबरने का यही तरीका है कि सारे तथ्य सभी कार्यकर्ताओं के सामने रख दिए जाएँ. यह पार्टी कार्यकर्ताओं के खून-पसीने से बनी है. अंततः आप वालंटियर ही ये तय करेंगे कि क्या सच है क्या झूठ. हम सब राजनीति में सच्चाई और इमानदारी का सपना लेकर चले थे. आप ही फैसला कीजिये कि क्या हमने सच्चाई, सदाचार और स्वराज के आदर्शों के साथ कहीं समझौता किया? आपका फैसला हमारे सर-माथे पर होगा.

आप सब तक पहुँचाने  के लिए हम यह चिठ्ठी मीडिया को दे रहे हैं. हमारी उम्मीद है कि पार्टी अल्पमत का सम्मान करते हुए इस चिठ्ठी को भी उसी तरह प्रसारित करेगी जैसे कल अन्य चार साथियों के बयान को प्रसारित किया था. लेकिन हम मीडिया में चल रहे इस विवाद को और आगे नहीं बढ़ाना चाहते. हम नहीं चाहते कि मीडिया में पार्टी की छीछालेदर हो. इसलिए इस चिठ्ठी को जारी करने के बाद हम फिलहाल मौन रहना चाहते हैं. हम अपील करते हैं कि पार्टी के सभी साथी अगले कुछ दिन इस मामले में मौन रखें ताकि जख्म भरने का मौका मिले, कुछ सार्थक सोचने का अवकाश मिले.

दोस्तों, अरविन्द भाई स्वस्थ्य लाभ के लिए बंगलूर में हैं. सबकी तरह हमें भी उनके स्वस्थ्य की चिंता है. आज अरविन्द भाई सिर्फ पार्टी के निर्विवाद नेता ही नहीं, देश में स्वच्छ राजनीती के प्रतीक है. पार्टी के सभी कार्यकर्ता चाहते हैं की वे पूरी तरह स्वस्थ होकर दिल्ली और देश के प्रति अपनी जिम्मेवारियों को निभा सकें. हमें विश्वास है कि वापिस आकर अरविन्द भाई पार्टी में बन गए इस गतिरोध का कोई समाधान निकालेंगे जिससे पार्टी की एकता और आत्मा दोनों बची रहें. हम दोनों आप सब को विश्वास दिलाना चाहते हैं कि हम सिद्धांतों से समझौता किये बिना पार्टी को बचने की किसी भी कोशिश में हर संभव सहयोग देंगे,  हमने अब तक अपनी तरफ से बीच बचाव की हर कोशिश की है, और ऐसी हर कोशिश का स्वागत किया है. जो भी हो,  हम अहम को आड़े नहीं आने देंगे. हम दोनों किसी पद पर रहे या ना रहे ये मुद्दा ही नहीं है. बस पार्टी अपने सिद्धांतों और लाखों कार्यकर्ताओ के सपनों से जुडी रहे, यही एकमात्र मुद्दा है. हम दोनों पार्टी अनुशासन के भीतर रहकर पार्टी के लिए काम करते रहेंगे

आपके
प्रशांत भूषण , योगेन्द्र यादव


(उम्मीदवार चयन से सम्बंधित प्रशांत भूषण की कुछ इमेल्स और हमारी चिट्ठी हम यहाँ संलग्न कर रहे हैं)